कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों पर रणनीति: ओपेक+ पर दबाव बनाने के लिए साथ आए भारत-चीन-अमेरिका

नई दिल्ली17 घंटे पहले

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भारत-अमेरिका-चीन समेत बड़े तेल उपभोक्ता देश अपने रिजर्व भंडार से क्रूड निकाल रहे हैं। एक्सपर्ट स्टेनली रीड (एनवाईटी) और अजय केडिया (केडिया एडवायजरी) बता रहे हैं कि तमाम मुद्दों पर एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होने वाले ये देश आखिर क्यों एक साथ आ गए हैं?

कौन-कौन से देश अपने भंडार से तेल निकाल रहे हैं?
अमेरिका और भारत के अलावा ब्रिटेन, जापान, दक्षिण कोरिया और चीन अपने रणनीतिक भंडार से तेल निकाल रहे हैं। अमेरिका ने 5 करोड़ बैरल निकालने के निर्देश दिए हैं। भारत ने 50 लाख बैरल, ब्रिटेन ने 15 लाख बैरल, जापान और दक्षिण कोरिया भी मिलकर 40 से 50 लाख बैरल रिजर्व तेल निकालेंगे।

ऐसा क्यों कर रहे हैं ये देश?
यह कदम तेल उत्पादक देशों ओपेक+ की तरफ से कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने से इनकार करने के बाद उठाया गया है। अगले महीने ओपेक देशों की बैठक होने जा रही है। उम्मीद है कि इस दबाव की वजह से वे उत्पादन बढ़ाने पर विचार करेंगे।

क्या पहले भी इस तरह की रणनीति अपनाई गई है?
जून 2011 में राजनैतिक संकट की वजह से लीबिया के उत्पादन में आई कमी की भरपाई के लिए 27 अन्य देशों ने लगभग 6 करोड़ बैरल रिजर्व ऑयल का इस्तेमाल किया था।

कौन कौन से देश इस तरह के स्ट्रेटजिक रिजर्व रखते हैं?
भारत समेत 29 सदस्य देश तेल का आपातकालीन भंडार रखते हैं। युद्ध में 90 दिन की जरूरत को पूरा करने वाला भंडार रिजर्व में रखा जाता है। अमेरिका के पास सबसे बड़ा 62 करोड़ बैरल रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार है।

क्या यह मुहिम कोई असर लाती दिख रही है?
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम पिछले महीने 86 डॉलर प्रति बैरल से भी ज्यादा हो गए थे। तेल जारी करने की धमकियों से इसमें थोड़ी गिरावट आई है। फिलहाल कच्चे तेल के दाम 78 डॉलर प्रति बैरल पर हैं।

भारत पर क्या असर होगा?
अगर रुपए का अवमूल्यन होता रहा तो भारत के लिए इस कवायद का कोई अर्थ नहीं रहेगा। कच्चा तेल डॉलर में सस्ता होने के बावजूद रुपए में महंगा ही पड़ेगा। चुनाव के मद्देनजर केंद्र भी अपनी तरफ से दाम घटाने की कवायद कर चुकी है। भारत के लिहाज से यह मुहिम बहुत आशाजनक नहीं है।

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