क्या श्रीलंका में जीतेगी भारत की बी टीम: युवाओं के कंधों पर जब भी आया दारोमदार, टीम चैम्पियन बनकर लौटी, वर्ल्ड कप से लेकर ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज तक जीती

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नई दिल्ली27 मिनट पहले

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टीम इंडिया जून में इंग्लैंड दौरे पर जा रही है। वहां, 18 से 22 जून तक न्यूजीलैंड के खिलाफ वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप का फाइनल खेलने के बाद अगस्त-सितंबर से मेजबान टीम के साथ पांच टेस्ट मैचों की सीरीज होनी है। इस बीच BCCI ने बताया है कि जुलाई में भारत की एक अन्य टीम श्रीलंका के दौरे पर जाएगी। इसमें इंग्लैंड दौरे पर गया कोई भी खिलाड़ी शामिल नहीं होगा। कहा जा सकता है कि श्रीलंका दौरे पर भारत की बी जाएगी। अब बड़ा सवाल उठता है कि युवा खिलाड़ियों से बनी यह टीम क्या श्रीलंका को उसके घर में हरा पाएगी? इस सवाल का जवाब हम इतिहास से पूछने की कोशिश करते हैं। यानी पहले के ऐसे वाकये जब कई सीनियर खिलाड़ी उपलब्घ नहीं थे, तब टीम ने कैसा खेल दिखाया?

2007 टी-20 वर्ल्ड कप है सबसे बड़ी मिसाल
सीनियर खिलाड़ियों के न होने पर भारतीय टीम कैसा खेल दिखाती है इसकी सबसे बड़ी मिसाल 2007 में हुआ पहला टी-20 वर्ल्ड कप है। तब टीम के तीन सीनियर खिलाड़ियों सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली ने खुद को टूर्नामेंट से अलग कर लिया। महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में युवा टीम चुनी गई। इसमें रोहित शर्मा, जोगिंदर शर्मा, रॉबिन उथप्पा, य़ूसुफ पठान, आरपी सिंह जैसे कई युवा खिलाड़ी शामिल थे।

युवराज, हरभजन, इरफान भी ज्यादा पुराने नहीं थे। इस टीम ने टूर्नामेंट में शानदार खेल दिया और चैम्पियन बनी। इसके बाद भारतीय क्रिकेट भी हमेशा के लिए बदल गया। देश में अगले साल से टी-20 लीग IPL भी शुरू हो गई।

भारत ने 2018 में रोहित शर्मा की कप्तानी में निदाहास ट्रॉफी अपने नाम किया।

भारत ने 2018 में रोहित शर्मा की कप्तानी में निदाहास ट्रॉफी अपने नाम किया।

निदाहास ट्रॉफी में भी टीम बनी चैम्पियन
2018 में धोनी, विराट सहित भारतीय टीम के कई सीनियर खिलाड़ी श्रीलंका में हुई टी-20 त्रिकोणीय सीरीज में हिस्सा लेने नहीं गए। रोहित शर्मा की कप्तानी में टीम घोषित हुई। इसमें लोकेश राहुल, वॉशिंगटन सुंदर, जयदेव उनादकट, दीपक हुडा जैसे कई कम अनुभवी खिलाड़ी भी चुने गए। टीम में अनुभवी और युवा खिलाड़ियों का मिश्रण था। इस टीम ने भी फाइनल में बांग्लादेश को हराकर खिताब जीता। इसी टूर्नामेंट के फाइनल में दिनेश कार्तिक ने आखिरी गेंद पर छक्का लगाकर भारत को जीत दिलाई थी।

2020 ऑस्ट्रेलिया दौरा
2007 वर्ल्ड कप और निदाहास ट्रॉफी टी-20 फॉर्मेट का टूर्नामेंट था। इसमें अक्सर युवा जोश अच्छा माना जाता है। लेकिन, भारतीय युवाओं ने 2020-21 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर भी टीम इंडिया को ऐतिहासिक जीत दिलाकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। पहले टेस्ट मैच में टीम इंडिया 36 रन पर ऑलआउट हो गई थी। कप्तान विराट कोहली बच्चे के जन्म के कारण भारत लौट आए थे। फिर जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी, रवींद्र जडेजा जैसे खिलाड़ी एक-एक कर चोटिल होते गए।

हालत यह हो गई कि नेट बॉलर्स को भी प्लेइंग इलेवन में शामिल करना पड़ा। आखिरी टेस्ट में उतरे भारत के पेस अटैक के पास सिर्फ 3 मैचों का अनुभव था। इसके बावजूद भारतीय टीम ने यह सीरीज 2-1 से अपने नाम कर इतिहास रच दिया।

तीन टीम भी बना सकती है टीम इंडिया
विशेषज्ञों के मुताबिक इस समय देश में टैलेंट की भरमार है। जरूरत पड़ने पर भारत दो क्या तीन टीमें भी खड़ी कर सकता है और हर टीम के पास चैम्पियन बनने का माद्दा होगा। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत ने इतनी सलाहियत आखिर हासिल कैसे कर ली। पाकिस्तान जैसा क्रिकेट प्लेइंग देश एक अच्छी टीम उतारने में भी संषर्ष कर रहा है।

राहुल द्रविड़ के कोच रहते पृथ्वी शॉ की टीम ने अंडर-19 वर्ल्ड कप जीता।

राहुल द्रविड़ के कोच रहते पृथ्वी शॉ की टीम ने अंडर-19 वर्ल्ड कप जीता।

भारत-ए के दौरे और राहुल द्रविड़ की कोचिंग ने किया कमाल
भारत में आज अगर बड़़ा टैलेंट पूल है तो इसके पीछे BCCI की लंबी प्लानिंग और राहुल द्रविड़ जैसे पूर्व दिग्गज का बड़ा रोल है। BCCI ने पिछले कुछ सालों से भारत-ए टीम के दौरे काफी बढ़ा दिए। जो खिलाड़ी भविष्य में टीम इंडिया की ओर से खेलने का दमखम रखते हैं उन्हें ए टीम के साथ ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका, न्यूजीलैंड, इंग्लैंड जैसे देशों के दौरे कराए जाते हैं। इससे पहले नेशनल टीम में आने से पहले विदेशी कंडीशन से वाकिफ हो जाते हैं। इसके अलावा अंडर-19 से लेकर ए टीम की कोचिंग राहुल द्रविड़ की देखरेख में होती है। इससे खिलाड़ी ऊंचे दर्जे की क्रिकेट के लिए तैयार होते हैं।

IPL का भी बड़ा रोल
चैम्पियन खिलाड़ियों की फौज खड़ी करने के पीछ इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) का भी बड़ा रोल है। इस लीग में भारत के युवा खिलाड़ी दुनिया भर के दिग्गजों के साथ ड्रेसिंग रूप शेयर करते हैं और उनसे सीखते हैं। साथ ही उनके अंदर स्टार फियर यानी बड़े नामों का खौफ भी खत्म हो जाता है। जब वे नेशनल टीम में आते हैं तो ऐसा लगता है कि मानों कई सालों से इंटरनेशनल क्रिकेट खेल रहे हों।

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