भास्कर इंटरव्यू- पूजा रानी: लड़कियों को भी खेलने दो; मां और कोच का सहयोग मिला तो पहुंची इंटरनेशनल लेवल तक
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नई दिल्ली33 मिनट पहले
जिद आपकी सबसे बड़ी ताकत होती है। इसका जीता-जागता उदाहरण हैं हरियाणा की बॉक्सर पूजा रानी। पूजा ने बॉक्सिंग खेलना शुरू किया तो बाहर वालों के साथ-साथ घर वालों ने भी मना किया, लेकिन पूजा ने खेल जारी रखने के लिए घर वालों को मनाया। 30 साल की पूजा 75 किग्रा कैटेगरी में एशियन गेम्स और एशियन चैंपियनशिप में दो गोल्ड सहित पांच मेडल जीत चुकी हैं।
दैनिक भास्कर और माई एफएम नवरात्रि के तीसरे दिन पूजा रानी के गांव से ओलिंपिक तक के सफर को आपके सामने लेकर आए हैं। जानिए कैसे पूजा ने तमाम मुश्किलों से पार पाते हुए मुक्के के दम पर अपना नाम दुनिया में मशहूर किया…
सवालः आपने बॉक्सिंग खेलना शुरू किया, तब आपको घर वालों का सपोर्ट नहीं था। ऐसा क्यों?
जवाबः शुरुआती दिनों में बाहर वालों को मनाना दूर की बात है, घर वालों को नहीं मना पा रही थी, क्योंकि पापा को बॉक्सिंग पसंद नहीं थी। उन्होंने पहले ही मना कर दिया था कि मार-धाड़ वाले गेम के अलावा कोई और खेल चुन लो। पापा को मनाने में काफी समय लग गया। रिश्तेदारों और आस-पड़ोस के लोग घर आकर बहुत कुछ बोलते थे। कहते थे कि लड़कियों का खेलना सही नहीं है, लेकिन मम्मी ने मुझे हमेशा सपोर्ट किया।
सवालः आपको पहला मेडल जीतने में कितना समय लगा और किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा?
जवाबः मैंने 2009 में बॉक्सिंग की शुरुआत की। 12वीं के बाद जब मैं कॉलेज गई तो मेरी जो लेक्चरर थी उनके पति कोच थे। उन्होंने मेरी हाइट देखकर कहा कि आपको बॉक्सिंग में आना चाहिए। उस समय मुझे बॉक्सिंग के बारे में कुछ पता नहीं था, लेकिन मुझे लगा कि बॉक्सिंग करना चाहिए। मैंने कभी ट्रेनिंग नहीं की थी। इसके बाद भी मुझे इंटर कॉलेज खेलने ले गए। वहां मैंने सिल्वर मेडल जीता। इसके बाद कई लोगों ने कहा कि तुमको बॉक्सिंग शुरू कर देनी चाहिए और इसमें आगे बढ़ना चाहिए।
सवालः आपका इंटरनेशनल मुकाबला कब शुरू हुआ? पहली बार मेडल कब जीता?
जवाबः मैंने 2011 में इंटरनेशनल टूर्नामेंट खेलना शुरू किया। इसमें पहला मेडल ही सिल्वर जीता था। इसके बाद 2014 में एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम्स सहित कई टूर्नामेंट में हिस्सा लिया।
सवालः ऐसा क्या हुआ था कि एक समय के बाद आपने बॉक्सिंग छोड़ने का मन बना लिया था?
जवाबः दो बार ओलिंपिक क्वालिफाई के लिए गई थी, लेकिन उसमें जीत नहीं पाई थी। उसके बाद मुझे लगा कि अब नहीं खेल पाऊंगी। बोरियत लगने लगी थी। मैंने कोच को भी बोल दिया कि अब नहीं खेलना, लेकिन कोच ने कहा कि जितने दिन आराम करना है करो, उसके बाद फिर से कोचिंग शुरू करेंगे। इस बीच दीवाली आ गई। मैं पटाखे फोड़ रही थी, जो हाथ में ही फट गया। इसमें हाथ काफी जल गया था। उसको ठीक होने में 6 महीने लग गए। उस समय भी लगने लगा था कि अब मेरा करियर खत्म हो गया। उस समय किसी का साथ भी नहीं था, लेकिन 2019 में एशियन चैंपियनशिप खेलने गई और चैंपियन बनी।
सवालः आपको हर किसी ने बॉक्सिंग करने से मना किया, लेकिन उसके बाद भी आप ओलिंपिक तक पहुंचीं। आपका सफर कैसा रहा?
जवाबः ओलिंपिक क्वालिफाइंग में हार मिल रही थी। इंजरी के कारण खेल से भी दूर थी, लेकिन 2020 में ओलिंपिक के लिए मैंने क्वालिफाई किया। यह मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी थी। कोरोना और लॉकडाउन की वजह से दिक्कतें हुईं। ओलिंपिक में अच्छा किया, लेकिन जीत नहीं पाई। इसके बाद 2021 में फिर से एशियन चैंपियनशिप में चैंपियन बनीं। इसके बाद मुझे विश्वास हुआ कि मैं ओलिंपिक जीत सकती हूं। अब अगले गेम्स की तैयारी शुरू कर दी है।
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